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काश, ऐसा होता (Wish It Were Like This)

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काश, ऐसा होता…

क‍ि स्कूल में हमें बताया जाता कि “बताओ, ये सब्जेक्ट पढ़के तुम ज़िंदगी में क्या करोगे?”
काश, बोर्ड एग्जाम का रैंक नहीं, सोचने का तरीका मापा जाता।
काश, कॉलेज में पहले साल में ही कोई पूछता, “तुम्हें वाकई क्या करना है ज़िंदगी में?” काश…

ऐसे ही “काश” से भरा पड़ा है हमारा एजुकेशन सिस्टम। एक लंबा-चौड़ा syllabus, ढेर सारे assignments, और अंत में एक डिग्री जो कहती है:
“आपने पूरे सिस्टम को बिना सवाल पूछे पार कर लिया। बधाई हो!”

एक छात्र का “काश” मोमेंट

एक बार एक छात्र ने मुझसे पूछा—“सर, अगर attendance का डर न हो, तो आप भी हर लेक्चर में आते क्या?”
मैं मुस्कुरा दिया। लेकिन सवाल अंदर कहीं चुभ गया।

क्योंकि सच ये है—हमने बच्चों को पाठ्यक्रम सिखा दिया, पर जिज्ञासा नहीं।
हमने उन्हें ग्रेड्स के पीछे भागना सिखाया, पर purpose ढूँढना नहीं।
काश…

Kaash 101: A Crash Course in Education Irony

  • Kaash, lectures थोड़े less monologue और ज़्यादा dialogue होते।
  • Kaash, “career counselling” एक गूगल फॉर्म नहीं होता।
  • Kaash, स्टूडेंट्स को वो भी पढ़ने मिलता जो उनकी curiosity को ignite करे, न कि बस syllabus से जुड़ा हो।
  • Kaash, teachers को भी सिखाया जाता कि उनका काम सिर्फ पढ़ाना नहीं, प्रेरित करना भी है।
  • Kaash, marks से ज़्यादा importance ideas को मिलती।

और सबसे ज़रूरी:
Kaash, education personal होती। Custom-made, not mass-manufactured.

अब सवाल है – क्या ऐसा हो सकता है?

हम कहते हैं – हो रहा है। यहीं, VGU में।

Introducing the “Kaash-Free” University

Vivekananda Global University एक ऐसी जगह है जहाँ हम "काश" को curriculum से हटाकर "हाँ, ऐसा होता है" में बदल रहे हैं।

1. यहां स्टूडेंट्स से पूछा जाता है:
  • "तुम क्या बनाना चाहते हो?"
  • "किसको solve करना चाहते हो?"
  • "क्या चीज़ तुम्हें सबसे ज़्यादा excite करती है?"

और उसके जवाब से syllabus बनता है—not the other way around.

2. यहां ग्रेड्स के अलावा भी growth होती है।

हम मानते हैं कि अगर कोई स्टूडेंट किसी NGO के साथ काम करके 10 ज़िंदगियों में फर्क ला रहा है, तो वो उतना ही “meritorious” है जितना कोई 10-pointer।
VGU में impact का मतलब सिर्फ CGPA नहीं है।
Impact का मतलब है – something moved, because you showed up.

“Kaash I could start something of my own…”

Most students say this at least once in college. At VGU, we say, “तो शुरू करो!”

हमारे स्टार्टअप सेल में आपको ideas validate करने मिलेंगे, mentors मिलेंगे, funding भी।
पर सबसे ज़्यादा मिलेगा—एक ecosystem जो कहता है, “Try. Fail. Learn. Repeat.”
यहाँ Kaash की कोई जगह नहीं। यहाँ “क्यों नहीं?” चलता है।

“Kaash मेरे पास कोई guide होता जो मुझे रास्ता दिखा पाता…”

Mentorship के नाम पर ज़्यादातर जगह एक ppt होता है, और एक “LinkedIn-worthy” speaker जो कहता है:
“Believe in yourself.”

(Thanks, but we were hoping for a little more.)

VGU में mentorship का मतलब है—weekly check-ins, shadowing opportunities, and brutally honest feedback.
आपके साथ बैठकर roadmap बनाना। हाँ, उसमें "believe in yourself" भी होगा, पर context के साथ।

“Kaash हमें पढ़ाया जाता कि रटने से ज़्यादा जरूरी है connect करना”

हमारे classrooms traditional नहीं, intentional हैं।

  • Projects on real issues
  • Learning across disciplines
  • Live briefs from real companies
  • Teamwork with people unlike you

VGU में हर subject का एक सवाल होता है—“इससे दुनिया में क्या बदलेगा?”
अगर जवाब “exam पास होगा” है, तो हम subject redesign करते हैं।

“Kaash मैं belong करता कहीं…”

हर छात्र कहीं न कहीं खो जाता है—भीड़ में, सिस्टम में, expectations में।

VGU में belonging एक tagline नहीं, एक practice है।

यहाँ alumni WhatsApp groups resume forward नहीं करते—
वो open-ended सवालों में participate करते हैं।
फैकल्टी यहाँ attendance sheet से ज़्यादा आपकी clarity को लेकर चिंतित है।
और स्टूडेंट्स? वो कहते हैं, "मुझे पहली बार लगा मैं यहाँ अपने जैसा बन सकता हूँ।"

“Kaash मेरी पढ़ाई कुछ meaningful करती…”

Let’s be blunt—बहुत सारे students को अपने course से ज्यादा meaning memes में मिलता है।

Not here.
यहाँ आप climate crisis पर काम कर सकते हैं, या cyber ethics पर, या AI + agriculture पर।
हमारे लिए “meaningful” का मतलब है—मामूली नहीं।

अगर आप कॉलेज के projects में ही दुनिया बदलने का सपना नहीं देख रहे, तो आप अभी तक बस pass हो रहे हैं, evolve नहीं।

Kaash, ऐसा होता कि कॉलेज सिर्फ marks के लिए नहीं, clarity के लिए होता

हमारा admissions brochure CGPA नहीं, curiosity को celebrate करता है।
हमारा convocation speech placements के numbers नहीं, journeys की कहानियां सुनाता है।
हमारे classrooms में कोई आख़िरी बेंच पर नहीं बैठता—क्योंकि यहां learning circular है, hierarchical नहीं।

“काश, ऐसा होता” को “हाँ, ऐसा है” में बदलने का काम आसान नहीं है।

ये brochures से नहीं, belief से होता है।
ये टॉप रैंकिंग से नहीं, ट्रांसफॉर्मेशन से होता है।

और यह तभी होगा जब हम हर छात्र को, हर शिक्षक को, हर पेरेंट को, और हर policy-maker को एक सवाल के साथ जगा सकें:

Author: Junaid Basri, HEAD OF ADMISSIONS

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